शनिवार, 22 अगस्त 2009

जसवंत के बाद किसका नंबर ?


हमें तो अपनो ने लूटा, ग़ैरों में कहां दम था..... ये कहानी हो गयी है बीजेपी की। चिंतन बैठक बुलाई तो थी चिंतन के लिए लेकिन नयी चिंताएं गले पड़ गई हैं। पार्टी उपाध्यक्ष बाल आप्टे ने हार के कारणों पर रिपोर्ट रखी या नहीं रखी इस पर पार्टी में असमंजस है। लेकिन उस रिपोर्ट की कॉपी मीडिया को सौंप दी गई। ज़ाहिर सी बात है ये रिपोर्ट पार्टी के ही किसी ऐसे नेता ने लीक की होगी जो इस चिंतन बैठक का हिस्सा रहा है। मीडिया में हार के कारणों का ख़ुलासा होने के बाद तिलमिलाए नेताओं में सबसे पहले अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मीडिया में आकर किसी भी रिपोर्ट के आने का खंडन किया। उनके बाद खंडन करने के लिए लाइन में थे राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली और फिर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर भी औपचारिक तौर पर पत्रकारों से रुबरु हुए।

ख़ैर ये बीजेपी के नेता खोज रहे होंगे की आख़िर वो भेदी कौन है लेकिन लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद से बीजेपी की उठापठक पर नज़र डाले तो आपसी खींचतान ने बीजेपी को बुरी तरह से तोड़ कर रख दिया है। बाल आप्टे की इस रिपोर्ट में भी आपसी समन्वय की कमी जैसे संयमित शब्द से इस खींचतान को ही बड़ी वजह बताया गया है। तमाम राजनैतिक दलों में खींचतान होती लेकिन जो ख़ीचतान इस वक़्त बीजेपी में चल रही है वो कुछ अलग क़िस्म की है। अलग इसीलिए क्योंकि इसमें हार के बावजूद पद की चाह में सब एक दूसरे की जड़े काटने में जु़टे हुए हैं। यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह जैसे नेता पहले ही बग़ावत का झंडा बुलंद कर चुके थे, और हार के ज़िम्मेदारों को पार्टी में बड़ी ज़िम्मेदारी दिये जाने के ख़िलाफ़ थे।

हार के ज़िम्मेदार? ये बड़ा सवाल अब भी बीजेपी के सामने मुंह बाये खड़ा है, मीडिया मे लीक हुई आप्टे कमेटी की रिपोर्ट के हिसाब से सही तरीक़े से ‘मज़बूत नेता निर्णायक सरकार’ के कैंपेन को जनता के सामने नहीं रखना और मनमोहन सिंह की साफ़ छवि के बावजूद उन्हें बार-बार कमज़ोर प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करना बीजेपी को भारी पड़ा। अगर यही तथ्य रखे गए हैं तो निशाना किस पर है या ज़िम्मेदार कौन है? वही जिसे मज़बूत नेता के तौर पर कमज़ोर प्रधानमंत्री के सामने खड़ा किया गया था। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की लालकृष्ण आडवाणी के साथ मुलाक़ात के बाद ये कयास लगाए जा रहे थे कि उन्हें अब लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद छोड़ना होगा। लेकिन चिंतन बैठक के पहले ही जसवंत के दांव ने इस ओर से सबका ध्यान भटका दिया था।

एक बार फिर आप्टे की रिपोर्ट के बाद ध्यान इस ओर गया तो सारे नेता जैसे घबरा से गए हैं। घबराहट इसीलिए क्योंकि अब भी वो तमाम नेता उच्च पदों पर बने हुए हैं जो हार से पहले चुनाव के रणनीतिकार थे या चुनावी मैदान के चेहरे थे। पार्टी उपाध्यक्ष बाल आप्टे को कारण ढूंढने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। कारण ढूंढ लिए गए है तो ज़ाहिर सी बात है अब उनको दूर करने की कोशिश की जाएगी। ऐसे में तमाम ज़िम्मदारों को हटाने का दबाव होगा, लेकिन अगर कार्यवाई करने वाले ही ज़िम्मेदार हो तो मुसीबत तो होगी ही। शायद यही वजह है कि फ़िलहाल हार के कारणों पर चिंतन होता दिखाई नहीं पड़ता, जबकि इसी पर बात करने के लिए ये चिंतन बैठक बुलाई गई थी।

भला हो जसवंत सिंह का जिन्होंने सही समय चुनकर एक विवादास्पद किताब लिख डाली और मीडिया और चिंतन बैठक दोनों का फोकस कहीं ओर शिफ्ट हो गया। क्या जसवंत सिंह पर आनन फानन में कार्यवाई की ये भी एक बड़ी वजह हो सकती है? ये तो ख़ुद पार्टी अध्यक्ष ही बता सकते है लेकिन ये साफ़ है की बीजेपी फ़िलहाल पार्टी से ज़्यादा निजी हितों को साधने का अखाड़ा दिखाई पड़ती है। जसवंत सिंह का ये समय और किताब का विषय चुनना ये साफ़ बताता है कि वो जानते थे पार्टी में उनकी दाल नहीं गलने वाली। कमज़ोर होती बीजेपी में अपनी मांगों को रखने का माकूल समय वसुंधरा राजे सिंधिया को भी यही लगा। अरुण जेटली पहले दिन भर मीडिया पर दिखते थे आजकल चुप रहते हैं क्योंकि चुनाव के मुख्य रणनीति कार वही थे। मुरली मनोहर जोशी और यशवंत सिन्हा जैसे नेता पहले ही किनारे लगे हुए हैं। हार के कारणों की रिपोर्ट जिसने भी मीडिया को लीक की होगी वो इसके परिणामों को जानता होगा। शायद वो ये भी चाहता होगा की हार के ज़िम्मेदारों पर कार्यवाई हो। भले ही राजनाथ कितनी भी कोशिशे करें एक बात तो तय है या तो इस लड़ाई में कुछ लोगों की अभी और विदाई होगी या फिर थक हार कर आडवाणी अब आराम करेंगे।

डॉ प्रवीण तिवारी
एंकर/प्रोड्यूसर, लाइव इंडिया,
Blog- drpraveentiwari.blogspot.com
Email- dr.praveentiwari@gmail.com

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