रविवार, 19 अक्तूबर 2014

आपके बिल्लू-पिंकी पिछले 40 साल से बच्चे के बच्चे क्यूं हैं?

मेरे इस सवाल पर प्राण साहब ठहाके मार के हंसने लगे और कहा क्युंकि वो बिल्लू-पिंकी हैं बड़े हो जाएंगे तो खत्म हो जाएंगे। चाचा चौधरी की उम्र भी नहीं बदली और साबू ने भी जूपीटर जाने का मोह छोड़ दिया। प्राण साहब ने कहा कि उन्हें कल्पना की उड़ान भरने में बड़ा मजा आता है और इसीलिए वो ये सब सोच पाते हैं। बच्चे सपनों में जीते हैं, कल्पनाओं में जीते हैं और बच्चों की कल्पनाओं को समझने के लिए उनकी तरह सोचना बहुत जरूरी है। इसीलिए मैं जब पिंकी-बिल्लू या बच्चों के लिए कुछ भी बनाता हूं तो खुद भी बच्चा बन जाता हूं। मैंने पूछा लेकिन आपकी तो अच्छी खासी उम्र हो गई है फिर कैसे बच्चों जैसे सोच पाते हैं? जवाब था मैं भी तो कभी बच्चा था और जानता हूं कि बच्चे कैसे सोचते हैं, कैसे सपने देखते हैं.. ये बात और है कि हममें से ज्यादातर उस बचपने को भूल जाते हैं उन सपनों और कल्पनाओं को भी लेकिन मेरे लिए तो कितनी मजेदार जिंदगी है मैं उन सपनों को देख भी सकता हूं और दुनिया के सामने रख भी सकता हूं... जो कार्टूनिस्ट प्राण को निजी तौर पर जानते हैं वो हमेशा उनके सहज शालीन व्यक्तित्व की बात करते दिखेंगे। मेरे लिए ये आश्चर्यजनक खबर थी कि वो कैंसर के मरीज थे। 74 वर्ष के अपने जीवन काल में वो चाचा चौधरी, साबू, बिल्लू-पिंकी, श्रीमती जी, रमन आदि जैसे जाने कितने किरदारों को लोगों के बीच जिंदा कर गए हैं। प्राण साहब का इंटरव्यू करने से पहले मैं बहुत उत्साहित था क्यूंकि अपनी एक रिसर्च के दौरान मैं देश के सभी बड़े कार्टूनिस्टों से मिला हांलाकि वे सभी पॉलिटिकल कार्टूनिस्ट थे। बहुत मन था कि प्राण साहब का इंटरव्यू भी करूं। उस वक्त उनका संपर्क निकाल पाना टेढ़ी खीर थी और मुझे भी चाचा चौधरी के जनक प्राण साहब किसी बहुत बड़े स्टार से कम मालूम नहीं पड़ते थे। खैर तब उनसे कोई मुलाकात नहीं हो पाई। कुछ सालों बाद जनमत के कार्यक्रम में नया दिन नई बात में जब उनके आने की खबर मिली तो मैं बहुत उत्साहित हो गया था। बार-बार बाहर जाकर देख रहा था कि प्राण साहब कौन हैं, कैसे दिखते होंगे, कहीं चाचा चौधरी जैसे ही तो नहीं, कड़क मिजाज होंगे या हंसी मजाक करने वाले ? बहुत से सवाल थे और साथ ही ये डर भी कि इतनी बड़ी सेलिब्रिटी हैं कैसे बात करेंगे सवालों के जवाब ठीक से देंगे या नहीं बहुत सी बातें सचमुच दिमाग में उमड़-घुमड़ रही थी। समय से आधा घंटा बीत जाने के बाद भी वो नहीं आए तो लगा कि कुछ भी कहो हैं तो बड़े आदमी ही। दो तीन बार बाहर उन्हें देखने के लिए जाते वक्त रिसेप्शन पर एक बुजुर्गवार से बैठे थे। छोटे कद के ये सज्जन मुझे देखकर मुस्कुराए भी थे और अभिवादन में मैं भी पलटकर मुस्कुरा दिया। स्टुडियो की तरफ वापस लौटते हुए मैंने उनसे पूछा सर आप किससे मिलने आए हैं। उन्होंने जवाब दिया एक कार्यक्रम में मुझे यहां बुलाया गया है। मैंने कहा किस कार्यक्रम में उनका जवाब था कार्यक्रम का तो पता नहीं मेरा नाम प्राण है और मैं कार्टूनिस्ट हूं। मैं समझ गया था कि वो कौन है और अपने गेस्ट कोर्डिनेटर से लेकर फेसिलिटी तक हर एक पर नाराजगी भी जतायी कि वो पिछले आधे घंटे से वहां बैठे हैं और किसी को इस बात की जानकारी भी नहीं। खुद पर भी गुस्सा आया कि बार बार बाहर जाकर देखने के बजाय एक फोन लगा लिया होता या इन्हीं सज्जन को इतनी देर से यहां बैठे हुए देख रहे हो एक बार उनसे पूछ ही लिया होता। खैर अच्छी बात ये थी कि वो एकदम शांत चित्त थे और उन्हें बहुत देर तक बैठे रहने के बावजूद किसी से कोई नाराजगी नहीं थी बल्कि वो मुझे ही समझाते हुए कह रहे थे कोई बात नहीं मैं कोई फिल्म स्टार थोड़े ही हूं जो मुझे कोई शक्ल से पहचान लेगा एक कार्टूनिस्ट ही तो हूं। उनसे ये मुलाकात जिंदगी की यादगार मुलाकातों में से एक थी और उनके कार्टून कैरेक्टर्स की तरह वो भी हमेशा हमेशा अमर रहेंगे। कार्टूनिस्ट प्राण को श्रद्धांजली। डॉ. प्रवीण तिवारी

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