धर्म-भाषा अनेक, मान्यताऐं अनेक,
आस्थाऐं अनेक हमने मानी हो।
हुए बलिदानी ऐसे यहां नरपुंगव अनेक,
जिनका जग में नहीं कोई सानी हो।।
भूखे-प्यासे लड़े, तख़्त फांसी चढ़े,
हंसते-हंसते गए कालापानी हो।।
महिमा उनकी रहे, रण में बलि-बलि गए,
कर गए अपनी अमर ज़िंदगानी हो।।
हिलमिल करना जतन, गुलाम हो न वतन,
लिख चले रक्त से ये कहानी हो।।
दुरें पापों के भोग, जियें सत्कर्मी लोग,
मिटे शोषण की अंतिम निशानी हो।।
त्यागो हठधर्मिता छोड़ो कटुता कपट,
शक्ति सम्पन्न न करें मनमानी हो।
ह्रदय सूखे न हों, मन रूठे न हो,
थोड़ा नयनों में लज्जा का पानी हो।।
पूरी-पूरी न हो, थोरी-थोरी ही हो,
ये न्यौछावर वतन पै जवानी हो।
कहीं दंगा न हो, ऋण का फंदा न हो,
सीधी-सादी-सरल, ज़िंदगानी हो।।
कोई भूखा न हो, कोई नंगा न हो।
हक़ जीने का सबको समानी हो।
दुरें पापों के भोग, जियें सत्कर्मी लोग,
मिटे शोषण की अंतिम निशानी हो।।
गौरव गाथाओं के गीत रचते रहें,
प्रहरी चौकस रहे, न्यायी निर्भय रहें,
सो न जाए चमन के माली हो।
मंदिर-मस्जिद रहें, गिरजे-गुरुद्वारे हों,
धर्मान्धता के कहीं वारे न्यारे हों।।
कहीं हिंसा न हो, पाप पलता न हो,
जियो और जीनो दो यही वेद वानी हो।।
राष्ट्र सम्मान हो, सब में स्वाभिमान हो,
हिन्दी हिन्द की बने राष्ट्रवाणी हो।
दुरें पापों के भोग, जियें सत्कर्मी लोग,
मिटे शोषण की अंतिम निशानी हो।।
जब तक सूरज रहे, चांद-तारे रहें,
गिरि हिमालय बने जीवनदानी हो।
नित शहीदों का पुण्य स्मरण सब करें,
सारे जग में न भारत का सानी हो।।
मां की तस्वीर हो, माथे कश्मीर हो,
धोए चरणों को सागर का पानी हो।
दांयें कच्छ का रण, बांयें अरुणांचल,
ह्रदय गोदावरी कृष्णा कावेरी हो।।
यमुना कल-कल करे, गंगा निर्मल बहे,
कभी रीते न रेवा का पानी हो।
दुरें पापों के भोग, जियें सत्कर्मी लोग,
मिटे शोषण की अंतिम निशानी हो।।
पुरवा ग्ता रहे, पछुआ गुनगुन करे,
मानसून की सदा, मेहरबानी हो।
सावन सूना न हो, भादों रीता न हो,
नाचे वन-वन में मोर मीठी बानी हो।।
उपवन खिलते रहें, वन महकते रहें,
खेतों, खलिहानों में हरियाली हो।
बीते पतझड़ के दौर, झूमें आमों में बौर,
कूंके कुंजन मे कोयलिया कारी हो।।
फले-फूलें दिगन्त गाता आए बसंत,
हर सबेरा नया और संध्या सुहानी हो।
दुरें पापों के भोग, जियें सत्कर्मी लोग,
मिटे शोषण की अंतिम निशानी हो।।
(साभार- janwadi.blogspot.com)
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2 टिप्पणियां:
प्रिय,डा. प्रवीण तिवारी जी,आप की कविता में देश के प्रति समर्पण अच्छा लगा.अच्छी लगी वह चाहत जो देश के लिए है .कविता के बाहर बम्बई हमले पर रिपोर्ट में भी ऐसा ही दर्द है.बहुतबधाई.
dhanyawad yadav ji, waise ye kavita mere pita ji ne likhi hi unka blog janwadi.blogspot.com zaroor padhe aapko aisi kai kavityen milengi....
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