आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत ने मोदी की
लोकसभा जीत की यादें ताजा कर दीं। कुछ इसी अंदाज में मोदी जीते थे और मतदाताओं का
पूरा समर्थन उनके साथ देखने को मिला था। दिल्ली की जनता ने भी साफ कर दिया कि
उन्हें केजरीवाल के वादों और दावों पर भरोसा है और वे उन्हें एक मौका देना चाहती
है। ये जीत इसीलिए भी महत्वपूर्ण है क्यूंकि इसमें लगातार जीत का घोड़ा दौड़ा रही
बीजेपी कछुआ भी साबित नहीं हुई। चुनावी सभाओं के बीच ओबामा की अगवानी कर रहे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोक सभा चुनाव के दौरान दिए भाषण को ही दिल्ली चुनाव
में दोहराना जनता को ज्यादा अपील नहीं कर पाया। अब मोदी सत्ता में थे और उनके पास
किसी पर आरोप लगाने को ज्यादा कुछ नहीं था। हरियाणा और महाराष्ट्र में भी बीजेपी
की जीत से ज्यादा कांग्रेस की हार दिखाई पड़ती है। ये बदलाव का समय है और इसमें
सत्ता पाकर खुश होने से ज्यादा जनता की भावनाओं और अपेक्षाओं को समझने की आवश्यकता
है। चाय वाले के बेटे के रूप में खुद को प्रचारित करने वाले मोदी के महंगे सूट को
देखकर जनता को धक्का लगा। कथी और करनी का ये फर्क जनता बर्दाश्त नहीं कर सकती है।
कांग्रेस के खिलाफ नाराजगी का फायदा भर उठा लेना असली जीत नहीं है। इन अपेक्षाओं
को जिंदा रखना और जनता के विश्वास पर खरा उतरना असली जीत होगी। ये मंथन बीजेपी और
आप दोनों को करना होगा। केजरीवाल ने जीत के बाद पहली बात यही कही कि इतने भारी
बहुमत से उन्हें डर लग रहा है। ये एक ईमानदार स्वीकारोक्ति है। सचमुच जनता की
अपेक्षाएं बहुत ज्यादा हैं और चुनावी भाषणों में किए वादों ने इन्हें और हवा दे दी
है। बीजेपी लाख इंकार करे लेकिन जनता ने मोदी सरकार के पिछल 8 महीनों पर भी अपनी राय जाहिर की है। यदि ये
मुकाबला कांटे का होता या बीजेपी थोड़ा बहुत भी प्रदर्शन इन चुनावों में कर पाती
तो बात शायद कुछ और होती। 2020 के सपने बुनने वाले मोदी जी को ये भी ध्यान रखना
होगा कि जनता जिस तेजी से ऊपर चढ़ाती है उतनी ही तेजी से नीचे भी ले आती है। आने
वाले दिनों में बिहार, यूपी, पंजाब, पं. बंगाल जैसे कई राज्यों पर बीजेपी की नजर
है। बिहार में नीतिश लालू एक होकर मोदी के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं और दिल्ली चुनाव
में इन दोनों ने भी केजरीवाल का समर्थन किया है। इसी तरह समाजवादी पार्टी ने भी
खुलकर केजरीवाल का समर्थन किया। ममता बनर्जी के सार्वजनिक समर्थन की घोषणा से तो
हम सब वाकिफ हैं ही। पंजाब से आम आदमी पार्टी के चार सांसद इस वक्त लोकसभा में हैं
और दिल्ली चुनाव के ताजा नतीजों के बाद वहां उसे और मजबूती मिलेगी। केजरीवाल को
झूठा कहने वाले मोदी जी को ये एहसास हो चुका है कि केजरीवाल का जनसमर्थन कोरी गप
नहीं थी। उन्होंने इस जीत के फौरन बाद केजरीवाल को फोन किया और चाय पर आमंत्रित भी
किया। केजरीवाल ने भी उनसे मुलाकात की बात कही है। चुनावी वादों और जुमलों के साथ
चुनावी दुश्मनी भी चुनावों तक ही सीमित होती है। मोदी जानते हैं कि उन्हें भी अपने
किए वादों को पूरा करना है। अभी उनके पास
समय है और यदि वे चुनावी वादों पर खरे उतरते हैं तो ही जनता का भरोसा उन पर बना
रहेगा। केजरीवाल पर भी यही नियम लागू होता है। एक बार तो कुर्सी छोड़कर बनारस जाने
पर जनता ने उन्हें माफ कर दिया लेकिन शायद फिर कभी खुद को साबित करने का इतना
बढ़िया मौका उन्हें न मिल पाए। वोट प्रतिशत को अहम मानने वाले चुनावी पंडित जानते
हैं कि इस बार भी दिल्ली की जनता ने बीजेपी को वोट दिया है। ये जरूर है कि
कांग्रेस के परंपरागत वोटर भी आप को जिताने के लिए लामबंद हो गए और केजरीवाल को ये
ऐतिहासिक जीत नसीब हुई है। केजरीवाल भी शायद इस बात को समझ गए हों कि सत्ता में
बैठे आदमी के मुंह से कोई नकारात्मक बात या किसी अन्य के खिलाफ कुछ भी बोलना जनता
को अच्छा नहीं लगता है। यही वजह है कि मोदी के भाषणों में केजरीवाल पर की गई
टिप्पणियां उन्हीं पर भारी पड़ गई हैं। केजरीवाल विरोध और आंदोलन की राजनीति से
पैदा हुए हैं लेकिन अब वे सत्ता में है और उन्हें पांच साल के जनता ने एक बेहतरीन
मौका दिया है। साथ ही आने वाले समय में उठाए जाने वाले उनके फौरीं कदम आगामी
विधानसभा चुनावों में भी उनकी संभावनाओं को बढ़ा सकते हैं। उम्मीद है वे इस अवसर
का लाभ उठाएंगे और जो कहा है कर के भी दिखाएंगे।
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