सोमवार, 29 नवंबर 2010

‘लकी नत्था’ का ‘पटना लाइव’


पटना लाइव एक कामयाब प्रयोग रहा क्योंकि इसने लाइव इंडिया को बिहार इलेक्शन जैसे महत्वपूर्ण समय पर बिहार में नंबर एक चैनल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें भी कोई संदेह नहीं की लाइव इंडिया की टीमें भी चुनाव के दौरान सभी महत्वपूर्ण जगहों पर तैनात थी और चैनल को दर्शक बिहार की खबरों के लिए भी देख रहे थे। आम आदमी के प्रतिनिधी के तौर पर पीपली लाइव से लोकप्रिय हुए ओंकारदास माणिकपुरी जिन्हें अब लोग नत्था के नाम से ही ज्यादा जानते है, को एक रिपोर्टर की भूमिका में बिहार के चुनावी मैदान में उतारना एक बड़ी चुनौती थी। चुनौती सिर्फ इसीलिए नहीं क्योंकि इलेक्शन कवर करना और वो भी बिहार का इलेक्शन किसी भी नए-नए पत्रकार के लिए बड़ी टेढ़ी खीर है बल्कि इसीलिए भी क्योंकि पीपली लाइव से पहचान पाने वाले नत्था असल ज़िंदगी में बहुत ही शर्मीले और धारा प्रवाह बोलने में असहज है।

अटकते हुए जब ओंकार ने शुरूआती एपीसोड्स किये तो लग रहा था कैसे मामला आगे बढ़ेगा लेकिन जैसे-जैसे सफर आगे बढ़ा ये उनका अंदाज़ बन गया और लोग ओंकार की इसी बात के कायल हो गये की उनमें कुछ भी बनावटी नहीं। बात सिर्फ अंदाज़ की नहीं बल्कि आम आदमी या यूं कहे उस आम आदमी जिसे दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से मयस्सर होती है उसकी ज़िंदगी के संघर्षों और सवालों की थी। ओंकार सिर्फ इन संघर्षों और सवालों को जानते नहीं हैं बल्कि इन संघर्षों को उन्होंने खुद जिया है और इन सवालों के जवाब वो खुद लंबे समय से ढूंढ रहे हैं। यही वजह रही की जब ओंकार को लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान और नीतिश कुमार से मिलने का मौक़ा मिला तो उन्होंने इन सवालों को आम आदमी के अंदाज़ में या यूं कहें अपने अंदाज़ में इनके सामने रखा और ये लोग भी ओंकार की निश्छलता के कायल हो गए।

पटना लाइव के लिए बिहार दौरे के बाद काउंटिंग का अहम दिन आया और यहां भी हमने ओंकार को अब एंकर के तौर पर पेश किया। पहले रिपोर्टर और फिर एंकर की भूमिका में ओंकार काफी उत्साहित थे हांलाकि बोलने में असहज होना और अटकने की समस्या अब भी बरकरार थी लेकिन बिहार की ज़मीनी परेशानियों को देखकर लौटे ओंकार के पास बोलने को बहुत कुछ था। पटना लाइव में जहां ओंकार ने बिहार की समस्याओं के साथ साथ रिपोर्टिंग की बारीक़ियों को तो समझा ही साथ ही उनके लिए बात करने में हिचक को दूर करने में भी ये मददगार साबित हुआ। ओंकार खुद कहते हैं की इस कार्यक्रम से उनकी ग्रूमिंग हुई है।
पूरे दिन काउंटिंग पर हमारी खास पेशकश के दौरान ओंकार साथ में रहे और बिहार अनुभवों के साथ साथ उन्होंने अपने जीवन के अनुभव भी साझा किये। सब्ज़ी बेचने और दैनिक भत्ते पर मज़दूरी करने के अलावा अपने परिवार को पालने के लिए ओंकार ने ऐसे कई पेशों को अपनाया। लोक गायकी के शौक और थियेटर से जुड़ाव ने उनकी ज़िंदगी में इस साल ये अहम मौक़े दिलवाये। ओंकार की अपनी ज़िंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नही और आज उनकी देशभर में पहचान किसी सपने जैसा लगता है। कुछ समय पहले रोज़ी-रोटी के लिए मारे-मारे फिरने वाले ओंकार को सड़कों पर लोग पहचानते हैं उनके साथ फोटो खिंचवाते है जो उनके अनपढ़ होने के बारे में नहीं जानते वो ऑटोग्राफ भी मांगते हैं। उन्हे देखकर किस्मत और सितारों के खेल भर भरोसा होता है लेकिन साथ ही गुरबत में मेहनत के साथ अपने शौक को ज़िंदा रखने के फायदे भी समझ में आते हैं।

ऑस्कर के लिए फिल्म जा रही है। कुल जमा पांच डॉयलॉग है ओंकार के किरदार नत्था के फिल्म में, इसके बावजूद वो फिल्म के हीरो है। फिल्म को ऑस्कर मिलता है तो ओँकार को पूरी दुनिया में पहचान मिलेगी। ओंकार मानते हैं उनका समय अच्छा चल रहा है तभी तो पहले उन्हे फिल्म मिली और फिर न्यूज चैनल मे रिपोर्टिंग का मौक़ा। किस्मत ने ओंकार का अच्छा साथ दिया है अब आगे का सफर उन्हे तय करना है, वैसे दिल्ली से वापस भिलाई पहुंचने के बाद ओंकार ने पहुंच कर खैरियत बताने की परंपरा को कायम रखते हुए कॉल करके बताया की वो ठीक ठाक पहुंच चुके हैं। उम्मीद है सिर्फ किस्मत नहीं उनके संघर्ष और अनुभव भी उनके करियर में मददगार साबित होंगे और इस सफर की तरह जीवन का सफर भी वो कामयाबी की और मंजिलों पर खैरियत से पहुंच कर तय करेंगे।

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