जैसे ही लालू नीतीश और कांग्रेस साथ आए ये तय हो गया
कि बिहार का मुस्लिम मतदाता अब पूरी तरह से इसी महागठबंधऩ के साथ खड़ा होगा।
गठबंधनों की राजनीति के बीच बिहार की सियासत को हिला कर रख दिया एमआईएम प्रमुख
असदूद्दीन ओवैसी ने। जेडीयू, कांग्रेस, राजद महागठबंधन को वोट देना मुस्लिम मतदाताओं मजबूरी लग रही थी क्यूंकि उनके बारे में ये माना जा रहा है
कि वे बीजेपी को विकल्प के तौर पर नहीं चुनेंगे। जबकि बीजेपी का दावा है कि अब
बिहार की जनता विकास के मुद्दे पर आगे बढ़ रही है। कितनी जागरूकता इस लिहाज से
बिहार के मतदाताओं में आई ये कहना तो मुश्किल है लेकिन एक बात तय है कि ओवैसी के
मैदान में आने से समीकरण बदल सकते हैं। ओवैसी ने क्यूं ये कदम उठाया ये भी वो साफ
नहीं बता रहे हैं लेकिन जानकार कहते हैं कि इसे बीजेपी के फायदे के रूप में देखना
जल्दबाजी होगी। जिस सीमांचल में ओवैसी चुनाव लड़ रहे हैं वहां बीजेपी के पिछले
प्रदर्शन को देखना भी जरूरी है।
सीमांचल का बड़ा हिस्सा मुस्लिम बहुल है। किसनगंज में
तो मुसलमानों की आबादी 70 फीसदी है। वहीं अररिया, कटिहार और पूर्णिया में मुसलमान लगभग
40 फीसदी हैं। सीमांचल के पूरे क्षेत्र में कुल 24 सीटें आती हैं। ओवैसी कितनी
सीटों पर लड़ेंगे ये तो उन्होंने नहीं बताया लेकिन यही वो इलाका है जहां उन्होंने
अपनी जमीन दिखाई दे रही है।
2009 लोकसभा चुनाव में अररिया, कटिहार और पूर्णिया इन
तीन सीटों को बीजेपी ने जीता था जबकि किसनगंज कांग्रेस के खाते में गई थी। वहीं
हाल में हुए लोकसभा में चुनाव में 40 में से 32 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने
सीमांचल की चारों सीटों में से एक पर भी जीत हासिल नहीं की। कांग्रेस, एनसीपी,
आरजेडी और जेडीयू चारों को एक एक सीट मिली। इन सबका एक साथ आना इस वोट को और मजबूत
करने की कोशिश है। यदि इन हालात में ओवैसे यहां पर ताल ठोकते हैं तो वो मोदी को
फायदा नहीं पहुंचा रहे हैं बल्कि सीमांचल के वोटर्स को एक विकल्प दे रहे हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2009 के लोकसभा
चुनाव का असर 2010 के विधानसभा चुनाव में दिखा था। बीजेपी ने सीमांचल की 24
विधानसभा सीटों में से 13 सीटें जीती थीं। लोजपा को 2, कांग्रेस को 3, राजद को 1,
जदयू को 4 और 1 अन्य को मिली थी। 2014 के लोकसभा के चुनाव में बीजेपी को सीमांचल
में झटका लगा है और हो सकता है इसका असर विधानसभा चुनाव में भी दिखाई पड़े।
मुस्लिम मतदाता जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस की अवसरवादिता पर कोई विकल्प तलाश लें
कि उम्मीद ओवैसी को है।
2 टिप्पणियां:
मुझे लगता है ओवैेसी कोई ऐसी छाप बिहार जनमानस पर शायद ही छोड़ पाएं कि उनसे किसी भारी उलटफेर की संभावना हो...असल में बिहार में वोटों के ध्रुवीकरण पर आप गौर करें तो मुस्लिम वोट आरजेडी जेडियू के साथ है हां स्थानीय स्तर पर कोई ऐसा उम्मीदवार जिसे ओवैसी तोड़ने में इन पार्टियों से कामयाब हो गए तो हो सकता है एक दो सीटें उन्हे मिल जाए लेकिन एक बात साफ है मुख्य मुकाबला बीजेपी जेडीयू के बीच ही है और आरजेडी इसमें जेडीयू की सहयोगी ही रह जाएगी लालू बारगेन की स्थिति में कभी शायद ही रह सकें...कोई आप संघ को अलग करके फिलहाल बिहार की राजनीति को नहीं देख सकते जिनका कमाल यूपी लोकसभा में हमने देखा है
very correct balanced & analytical article,,,,!
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