मेरे ही शो के दौरान एक ऐसी निंदनीय घटना हुई जो घोर भर्त्सना के
काबिल है। इस घटना की मैं और हमारा चैनल दोनों ही निंदा कर रहे हैं। निंदा करते
हैं तो दिखा क्यूं रहे हैं? ऐसे लोगों को बुलाते ही क्यूं हैं? आप एंकर हैं आपने
रोकने की कोशिश क्यूं नहीं की? आप ही भड़काते हैं और फिर टीआरपी बटोरते हैं? टेलीविजन के कई
मर्मज्ञों ने इस प्रकार के सैंकड़ों प्रश्न ट्वीटर, फेसबुक, वाट्सएप और मेल के
जरिए मुझे निजी तौर पर भेजे हैं। जो स्नेहीजन हैं वे इस घटना के बाद मेरे लिए
चिंतित भी थे। आप सभी सुधीजनों और स्नेहीजनों को सादर नमन करते हुए कुछ महत्वपूर्ण
प्रश्नों के उत्तर दे रहा हूं। ये मेरी नितांत निजी राय हैं। ये मेरे संस्थान की
खूबसूरती और बड़प्पन है कि वो मुझे अपनी बात लिखने और कहने देने की स्वतंत्रता
देता है। मैं अपने संस्थान का भी आभार व्यक्त करते हुए अपनी बात शुरू कर रहा हूं।
अलग अलग सबके प्रश्नों का जवाब देना संभव नहीं था। ज्यादातर प्रश्न एक जैसी ही
हैं। कुछ छात्रों और युवाओं ने उत्तेजनावश कई अप्रासंगिक प्रश्न भी भेजे लेकिन वे
टेलीविजन पत्रकारिता से अभी अनभिज्ञ हैं उनके प्रश्नों के जवाब में भी कुछ बातें । कार्टून मेर प्रिय विषय है मुझ पर भी कार्टून बनें ये अत्यंत गर्व का विषय है। वो भी मेरे प्रिय कार्टूनिस्टों शेखर गुरेरा और कीर्तीश जी के हाथों। इन दो कार्टूनों को भी शामिल कर रहा हूं जो हजार शब्दों के बराबर हैं।
मैं अपने चैनल पर लगातार पिछले दो दिनों से इस विषय पर अपनी बात कहता
रहा हूं। कुछ रेडियो चैनल्स और अखबार भी इस विषय पर मेरी सफाई मांग चुके हैं और
मैंने उनके साथ पूरी तरह से सहयोग किया है। यहां आप मित्रों को एक बार इस घटना के
दौरान उपस्थित हुई स्थिती से अवगत करना चाहूंगा। मैं लगातार मेहमानों को गरिमामयी
तरीके से बात करने के लिए कहता रहा। अप्रिय स्थिती बनने की स्थिती में मैंने
उन्हें चुप रहने के लिए आग्रह भी किया। जब दीपा शर्मा अपनी कुर्सी से उठीं तो मुझे
लगा कि वे शो छोड़कर जा रही हैं। ऐसी स्थितियां कई बार बनती है जब अनर्गल बातों से
नाराज मेहमान शो छोड़कर चला जाता है। ओम बाबा कुछ ऐसी ही निजी बातें उनके बारे में
कह रहे थे। लेकिन कुर्सी से उठने से महज 15 से 20 सैकेंड के बीच में वो ओम बाबा के
नजदीक पहुंची और चांटा रसीद कर दिया। इसके फौरन बाद बाबा ने उन्हें चांटा मारा।
एस्टोलॉजर राखी भी वहां मौजूद थीं। मैं फौरन ही इस जगह पर पहुंच गया था और इन
दोनों को अलग करने का प्राथमिक प्रयास मैंने और राखी ने किया। इसके बाद न्यूज रूम
से तमाम सीनियर्स भी यहां पहुंचे और हमने इन दोनों को अलग किया। ओम बाबा के महिला
पर हाथ उठाने की कड़ी भर्त्सना करते हुए हमने उन्हें वहां से फौरन जाने के लिए
कहा।
आप ऐसे लोगों को बुलाते ही क्यूं हैं?
दीपा शर्मा शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी की प्रवक्ता रह चुकी
हैं। ओम बाबा हिंदू महासभा ओम के पदाधिकारी हैं। दोनों ही कई चैनलों पर लंबे समय
से पैनलिस्ट के तौर पर बैठते रहे हैं। ये दोनों हमारे शो आज का मुद्दा में भी कई
बार आमने सामने आए हैं। ऐसे किसी भी मेहमान से ये आशंका नहीं रहती कि वो ऑन एयर
इतना असंयमी हो सकता है कि हाथापाई पर उतर आए। ये भी आशंका कम ही रहती है कि वो
किसी के निजी जीवन के बारे में अभद्र टिप्पणियां करने लगेगा। जैसे ही ये स्थिती
बनी मैंने इन दोनों को ही धन्यवाद कर शो से बाहर करने का फैसला कर लिया था लेकिन
जब तक मैं इसकी घोषणा करता महज कुछ सैकेंड्स में वो हो गया जो घोर निंदा के काबिल
है।
साभार शेखर गुरेरा |
ऐसे विषय क्यूं उठाते हैं?
राधे मां पर बात करने की जरूरत ही क्या है? मैं इस प्रश्न का उत्तर बहुत ईमानदारी से
देना चाहता हूं। आईबीएन 7 पर उसी दिन कई और मुद्दों और मसलों पर चिंतन हुआ। क्या
आपको वो याद हैं? चैनल के कार्यक्रम शाबाश इंडिया में देश के युवाओं के टैलेंट को
दिखाया जाता है दर्शक इसे पसंद करते हैं। हम तो पूछेंगे में सुमित अवस्थी प्राइम
टाइम की सबसे बेहतरीन चर्चा सबसे गंभीर विषयों के साथ लेकर आते हैं। खुशी की बात
ये है कि आप इन कार्यक्रमों को देखते भी हैं और पसंद भी करते हैं। लेकिन जरा
गंभीरता से विचार कीजिए इन्हें ट्वीटर पर या फेस बुक पर नंबर वन ट्रैंडिंग टॉपिक
बनाने का प्रयास क्यूं नहीं करते? आपने कोई सवाल मुझसे किसी अन्य कार्यक्रम के
बारे में क्यूं नहीं पूछा? जहां तक राधे मां के टॉपिक का प्रश्न है मैं जनता
की आस्था से खिलवाड़ करने वाले, उन्हें गुमराह करने वाले किसी भी विषय के खुलासे
को महत्वपूर्ण विषय मानता हूं। आप सिर्फ टॉपिक पर न जाए उस दौरान क्या चर्चा चल
रही थी। किन बातों के प्रति दर्शकों और आम लोगों को जागरूक किया जा रहा था उसे भी
समझने का प्रयास करें। लोगों के गाढ़े पसीने की कमाई शो बिज में उड़ाना और
आध्यात्मक का मजाक उड़ाने वालों का खुलास में अगंभीर विषय नहीं मानता। दर्शक भी इस
बात की पुष्टि करते हैं कि वे इस विषय को देखना सुनना चाहते हैं।
निंदा करते हैं तो दिखाते क्यूं हैं?
ये प्रश्न वही पूछ रहे हैं जो सतत इसे देख रहे हैं। या वे लोग भी पूछ
रहे हैं जो.... आप इतना क्यूं देखे जा रहे हैं... से परेशान हैं। मैं सिर्फ एक
टेलीविजन पत्रकार ही नहीं हूं एक अध्यापक भी हूं। मेरे विद्यार्थी मुझ पर पूरा
भरोसा करते हैं और मैं भी उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी समझता हूं। ताइवान में ऑनएअर
मारपीट की तस्वीरें हमारे चैनलों ने चलाई। मेरे शो के दौरान हुई हाथापाई की
तस्वीरें तमाम अन्य चैनलों ने भी चलाई। क्यूं? ये पत्रकारिता के विद्यार्थी हैं या रहे
हैं या व्यवसायिक रूप से टेलीविजन पत्रकारिता को जानते हैं वो जानते हैं कि ये एक
अहम और बड़ी खबर है। किसी राष्ट्रीय न्यूज चैनल के स्टूडियो में इस तरह की हाथा
पाई बड़ी खबर है और इसीलिए इसे हम ही नहीं पूरा देश दिखा रहा है। क्यूंकि हमारे
चैनल में हुआ, मैं एंकर था तो हमारी जिम्मेदारी इस विषय पर ज्यादा जानकारी देने की
बनती है। उस जिम्मेदारी को निभाना जरूरी है। ऐसा नहीं कि कोई अन्य खबर चली ही
नहीं. सारे शोज और बुलेटिन वैसे ही चलते रहे लेकिन आपकी नजर में सिर्फ ये खबर
ज्यादा क्यूं आ रही है इस पर आपको विचार करना चाहिए? इस पर विचार करते ही आपको टेलीविजन में
इन तस्वीरों और इस खबर का महत्व खुद ब खुद समझ में आ जाएगा।
क्या कदम आगे उठाएंगे?
कुछ लोगों ने ये सवाल भी पूछा है कि आगे आप इस तरह की घटनाओं को रोकने
के लिए क्या करेंगे? ये चिंतन का गंभीर विषय है। कोई मेहमान किस मनःस्थिती में बैठा है
कहना मुश्किल हैं लेकिन ये तो जरूर किया ही जा सकता है कि किसी भी मेहमान के
बैकग्राउंड को पहले ही पता किया जाए। इस घटना में शामिल दोनों ही मेहमानों के बारे
में पहले ही लिख चुका हूं कि वे टेलीविजन के लिए नए नहीं हैं और लोग उन्हें जानते
थे। कल हमारे ही शो में महामंडलेश्वर मार्तंडपुरी जी और आचार्य दीपांकर जी महाराज
ने कहा कि व्यक्तित्व और व्यक्तिगत गुणों के आकलन के साथ साथ उनके उस विषय पर किए
गए कार्यों की विवेचना करने की जरूरत है जिस पर वो बोलने आए हैं। साथ ही विषयों
में किसी भी मेहमान के पटरी से उतरते ही उसे चर्चा से बाहर करने और दोबारा न
बुलाने का प्रावधान भी होना चाहिए।
टेलीविजन हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। हम बहस को बहस इसीलिए
कहते हैं क्यूंकि उसमें दो विपरीत सोच के मेहमान अपनी बातों को तर्कपूर्ण तरीके से
रखते हैं। दोनों ही पहलुओं को सुनकर दर्शक अपनी राय भी बनाते हैं। ऐसी चर्चाओं के
महत्व को शास्त्रार्थ की परंपरा से भी तौला जा सकता है। हां शास्त्रों के मर्मज्ञ
और सतही ज्ञानियों के फर्क के लिए एक मजबूत व्यवस्था बनानी होगी। इसमें आप भी
सहयोग देवें। मैंने ज्यादातर महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर पूरी ईमानदारी से यहां
देने के प्रयास किए हैं इसके बावजूद यदि आप सार्थक चर्चा करना चाहते हैं तो मुझे drpraveentiwari@gmail.com पर मेल करें। @drprveentiwari ट्वीटर हैंडल का उपयोग करें या मेरे फेसबुक
प्रोफाइल drpraveen tiwari का उपयोग करें। स्नेह बनाएं रखें। धन्यवाद।
2 टिप्पणियां:
निज़ी तौर पे मैं आपके जवाब से संतुष्ट हुं पर बस एक प्रार्थना है यह बाबा शब्द इस्तमाल न करें... ऐसे उठाई गिरों को बाबा न बनाये.. आपको सम्मान देना है तो श्रीमान कह कर संबोधित करें... हम एक और बाबा को झेलने के लिए अभी तैयार नहीं है.. यह वीड़ियो देखिये फिर खुद सोचिये हय इसंन बाबा कहलाने के लायक है या नहीं...
https://youtu.be/Ij0qfPx7YMk
प्रवीण जी,
बेहतरीन कार्यक्रम के लिए बधाई. आपकी भूमिका की तारीफ इसलिए करना चाहूँगा कि जैसे ही हालात गंभीर होते नज़र आए आपने कार्यक्रम का समापन कर दिया. आपने कार्यक्रम पर जो भी लिखा है विचारणीय है!
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for refenance :
वाह रे पाकिस्तान !
ऑडिशन के लिए एक लड़का स्टूडियो पहुंचा।
एंकर ने उससे पूछा कि क्या उसने बहादुरी का कोई काम किया है।
उस लडके ने कहा -- हां, मैंने रेप किया है।
http://prakashhindustani.blogspot.in/2015/01/blog-post_6.html
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