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फिल्मों में विलेन शुरुआत से लेकर अंत हीरो और उसके परिवार पर अत्याचार करता रहता
है। आखिरी कुछ मिनिटों में वो वक्त आता है जब हीरो विलेन का अंत करने वाला होता
है। इस सीन के आने से पहले दर्शक में भी हीरो की बहन, मां-बाप, दोस्तों आदि पर किए
गए अत्याचारों का गुस्सा भर जाता है। अंत में जब हीरो उस विलेन की पिटाई कर रहा
होता है तो दर्शक के मन में भी यही भाव आता है कि कुचल कर रख दो इस जालिम को। बड़ा
परेशान किया है इसने और विलेन के अंत के बाद दर्शक एक सुकून महसूस करता है। यहीं
हाल सिस्टम से पिटे आम आदमी का होता है। सुबह जब वो अखबार में स्कैम, अपराध और
अन्य नकारात्मक खबरों को देखता है तो उसका गुस्सा ऊबाल पर होता है। ऐसे में एक
कार्टूनिस्ट का राजनेताओं और सिस्टम पर करारा प्रहार उसे वही सुकून देता है जो
विलेन की हीरो द्वार पिटाई के बाद दर्शकों को मिलता है। मेरे साथ ही साल 2002 में
एक इंटरव्यू के दौरान ये बात तैलंग साहब ने कही थी। इससे अच्छी और सरल पॉलिटिकल
कार्टूनिंग की परिभाषा कोई दूसरी नहीं हो सकती। इस बात को कहने वाला किस
जिम्मेदारी के साथ अपने कार्टून्स को बनाता था उसका अंदाजा भी आप लगा सकते हैं।
launch of his sudhir tailang's book India on Sale |
वो
सचमुच वो हीरो थे जो आम आदमी के गुस्से को बाहर निकालने का मौका देते थे। इस
पीएचडी के साथ ही उन्हें निजी तौर पर जानने का सौभाग्य मिला और फिर कई बार उनसे
मुलाकातें होती रही। पिछले 13 सालों के साथ ने उनके साथ एक गुरू एक गाइड का संबंध
जोड़ दिया था। जो अंत तक जारी रहा। उनके कैंसर से लड़ने के दौर में उनसे कम बात
हुई। लेकिन जब वो अस्पताल से घर वापस आए और उन्होंने बताया कि सब ठीक है तो लगा था
वो कैंसर की लड़ाई जीत लेंगे लेकिन उनके यूं अचानक चले जाने से कार्टूनिंग जगत के
साथ साथ मुझे एक निजी क्षति हुई है।
सुधीर
तैलंग और आर. के. लक्ष्मण में एक बड़ी समानता ये थी कि दोनों ही सिर्फ कार्टून
बनाने के लिए बने थे। शंकर, अबु, मारियो, रंगा जैसे कई कार्टूनिस्टों की परंपरा को
आगे बढ़ाने वालों में सुधीर तैलंग सबसे कारगर साबित हुए। पोलिटिकल कार्टूनिंग
सचमुच खत्म होती जा रही है अब अखबारों में वो कार्टून और कार्टूनिस्ट नहीं मिलते
जो पहले हुआ करते थे। सुधीर तैलंग इस बात को खुद भी मानते थे। मेरे लिए उनका जाना
एक निजी क्षति है। कार्टून बनाने के शौक ने बहुत छोटी उम्र में अखबारों में छपने
वाले कार्टून्स की कॉपी करने का अभ्यास पैदा कर दिया था। उसमें भी हिंदुस्तान
टाइम्स में छपने वाले HERE
& NOW कॉपी करना बहुत अच्छा
लगता था। उस समय कार्टून का विषय वस्तु तो समझना नहीं आता था। उसकी लाइन्स और
ड्रॉईंग को देखना और कॉपी करना अच्छा लगता था। पत्रकारिता की पढ़ाई करते हुए पहली
बार मौका मिला आर. के. लक्ष्मण के साथ एक वर्कशॉप करने का। इसी वर्कशॉप में पहली
बार सुधीर तैलंग जी से भी मिला। जब मैंने जाना कि ये वहीं सुधीर तैलंग हैं जिनके
कार्टून मैं कॉपी किया करता था। पहली बार किसी सेलीब्रिटी से मिलने वाला एहसास
हुआ। यही है वो शख्स जिनके कार्टून हम बहुत छोटी उम्र से देखते आ रहे हैं।
इसी
वर्कशॉप में कार्टून के मास कम्यूनिकेशन का अहम हिस्सा होने की बात समझ आई थी।
कितने प्रभावी तरीके से ये कार्टून पत्रकार अपना काम कर रहे हैं । इसी विषय पर
पीएचडी करने का इच्छा थी। पर कैसे करें, क्यूंकि कोई लिटरेचर मौजूद नहीं, कुछ लिखा
नहीं गया? ये सवाल मन में उठे। तरीका एक ही
था उनसे जानों जो इस फील्ड के महारथी हैं। इस वर्कशॉप के लगभग दो साल बाद दिल्ली
में हिंदुस्तान टाइम्स की बिल्डिंग में पहली बार सुधीर जी से मिलने का मौका मिला।
राजेंद्र धोड़पकर जी का नंबर मिला था। उनसे बात हुई और उन्हीं ने फिर सुधीर जी का
कमरा दिखाया। सुधीर जी से मिला तो वही सेलीब्रिटी से मिलने वाली फीलिंग थी। बहुत
लंबी बात हुई। मैं और पंकज ये पूरा इंटरव्यू रिकॉर्ड करते रहे। ऐसा लगा पूरी किताब
उनके जीवन में बसी हुई है। तभी तय किया कि इस पूरी रिसर्च में सर का मार्गदर्शन ही
लिया जाएगा। अपनी इच्छा उनके सामने रखी और वो बहुत खुश हुए। वो पूरी रिसर्च के
दौरान अपना मार्गदर्शन देते रहे और इसके पुस्तक में आने का इंतजार करते रहे। ये
मेरे लिए बहुत दुखद है कि अब जब इस पुस्तक पर काम शुरू हुआ है तो हमारे बीच नहीं हैं
जिन्होंने इसकी प्रस्तावना लिखी।
Sudhir Tailang, Sudhir Chaudhary and me after a show on Live India |
उनकी
किताब इंडिया फॉर सेल पर हाल में एक पूरा कार्यक्रम बनाया था। वो बहुत खुश थे और
ऐसा लग रहा था कि अभी कई किताबें हमें देखने को मिलेंगी। हाल ही में आर. के.
लक्ष्मण और उनके बाद सुधीर जी के जाने से कार्टूनिंग जगत को कभी न पूरी होने वाली
कमी झेलनी होगी। 2004 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। कार्टूनिस्ट
को ये पहचान मिलना बहुत बड़ी कामयाबी मानी जाती
है। कार्टूनिस्ट के निशाने पर हर कोई होता है खासतौर पर सत्ताधारी दल। फिर भी उनके
कार्टूनों ने उन्हें सभी का दोस्त बनाया। आडवाणी जी और नरसिंहराव उनके प्रिय
किरदार रहे जिनके कैरीकेचर बनाने में उन्हें सबसे ज्यादा आनंद आता था। कार्टूनिंग
पर की गई रिसर्च में उनके योगदान और विचारों को जल्द आपके साथ साझा करूंगा। मेरी
सुधीर सर को श्रद्धांजलि।
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